फ़्रांस प्रेस के अनुसार बांग्लादेश के एक अधिकारी ने बताया है कि इस देश से रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी का क्रम अगले सप्ताह से आरंभ हो जाएगा। उन्होंने बताया कि अब तक दस लाख रोहिंग्या मुसलमानों का नामांकन किया जा चुका है जबकि अभी भी बहुत से रोहिंग्या मुसलमानों का नामांकन होना बाक़ी है। इस अधिकारी का कहना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार से मिलने वाली बांग्लादेश की सीमा पर पनाह दी गई है और उनकी संख्या उससे कहीं अधिक है जितनी अबतक बताई जा रही थी।
बताया जाता है कि म्यांमार की सेना और वहां के अतिवादी बौद्ध चरमपंथियों के संयुक्त हमलों के बाद इस देश के राख़ीन प्रांत से बहुत बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान अपनी जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए। म्यांमार की सेना और बौद्ध चरमपंथियों के हमलों में छह हज़ार से अधिक रोहिंग्या मुसलमान मारे जा चुके हैं जबकि घायलों की संख्या आठ हज़ार से अधिक बताई जा रही है।
यूनीसेफ ने घोषणा की है कि पांच लाख रोहिंग्या बच्चे बहुत ही ख़तरनाक स्थिति में जीवन गुज़ार रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि बांग्लादेश में विस्थापन के बाद लगभग 5 लाख रोहिंग्या बच्चों के हालात बहुत ही ख़तरनाक हैं।
बांग्लादेश में यूनिसेफ कार्यक्रम के प्रमुख एडॉरड बैगबेदर ने मानसून और चक्रवाती तूफान के प्रभावों पर चेतावनी देते हुए कहा कि हजारों बच्चे पहले से ही भयावह हालात में जीने पर मजबूर हैं जिनको बीमारी, बाढ़, भूस्खलन और फिर से विस्थापन जैसी समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं। यूनिसेफ़ का कहना है कि यहां पर पहले से ही मानवता के लिए हालात भयावह हैं।
यूनीसेफ के अनुसार बांग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में डिप्थीरिया फैलने से दसियों लोगों की जानें गई हैं। मृतकों में कम से कम 24 बच्चे शामिल हैं। रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में डिप्थीरिया के लगभग चार हज़ार संदिग्ध मामले सामने आये हैं।
डिप्थीरिया एक संक्रामक रोग है। इस बीमारी से ग्रस्त होने पर छोटे बच्चों की मृत्यु होने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है। बैगबेदर ने कहा कि असुरक्षित पानी, अपर्याप्त सफाई और स्वच्छता की खराब स्थिति से हैजा तथा हेपेटाइटिस-ई फैलने का ख़तरा बना रहता है। डिप्थीरिया, गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों के लिए भी जानलेवा बीमारी है। वहीं जलभराव से मलेरिया फैलने का ख़तरा है।
उल्लेखनीय है कि गत साल अगस्त माह में म्यांमार की सेना और वहां के बौद्ध चरमपंथियों द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों के दमन की वजह से लगभग साढ़े छह लाख रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार के रखाइन प्रांत से विस्थापित होकर सीमा पार करके बांग्लादेश में शरण लेने को विवश होना पड़ा था।
राखीन में रोहिंग्या मुसलमानों के नस्ली सफ़ाए का भयानक अपराध करने के बाद अब सुरक्षाकर्मियों और चरमपंथी बुद्धिस्टों में होने वाली झड़प में 7 बुद्धिस्ट मारे गए हैं।
म्यांमार के सुरक्षाकर्मियों ने चरमपंथी बुद्धिस्टों पर उस समय फ़ायरिंग कर दी जब वह सरकारी इमारतों पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे थे। इस घटना में दर्जनों बुद्धिस्ट घायल भी हुए हैं।
हज़ारों की संख्या में बुद्धिस्ट अपने उस मंदिर के सामने एकत्रित हुए थे जो मुसलमानों पर सेना के क्रैकडाइन के दौरान बंद कर दिया गया था। अचानक वहां पुलिस और चरमपंथी बुद्धिस्टों में टकराव हो गया। इस टकराव का कारण नहीं पता चल सका। बुद्धिस्टों ने सरकारी इमारतों पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश शुरू कर दी।
बताया जाता है कि हिंसा से एक दिन पहले म्यांमार और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्या मुसलमानों की स्वदेश वापसी के मुद्दे पर सहमति बनी थी जिसके तहत रोहिंग्या मुसलमानो को सुरक्षित रूप से अपनी बस्तियों की ओर लौटना है।