सऊदी अरब या विश्व का अन्य कोई मुस्लिम देश जो शरीयत कानून का पूरी तरह से पालन करने का दावा करते हैं. जहां इस्लामिक लॉ के मुताबिक लोगो के अपराध की सज़ा दी जाती हैं, और दुसरे मुद्दों पर भी इस्लामिक लॉ को फॉलो किया जाता हैं. लेकिन, जब इस्लामिक कानून पर बहस की बात आते हैं तो सेक्युलर समुदाय विशेषकर इस्लामिक कानून को गलत ठहराने के लिए महिलाओ के अधिकारों के मुद्दे को सामने रखा जाता हैं.
अभी हाल ही में महिलाओं से जुड़ी एक खबर सामने आयी थी, दरअसल ये खबर सऊदी अरब की हैं इसलिए गौरफिक्र के लायक हैं. खबर में ये दावा किया गया था कि यहाँ एक व्यक्ति को इसलिए जेल भेज दिया गया क्योकि उसने महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया था और मर्दो के खिलाफ आवाज़ उठायी. परिणामस्वरूप मैं इस मामले पर कुछ अपने तास्सुरात बयान कर रहा हूँ. अरब में महिलाओं के अधिकारों का हनन किया जाता हैं ये बात कहा तक सही हैं और विशेष कर इस्लामिक कानून में महिलाओं का हनन किया जाता हैं क्या ये सच हैं.
तो आइये आपको वास्तविकता के दूसरे पहलु से रूबरू कराते हैं. इस्लाम धर्म के कानून की बात जब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सामने आते हैं तो अमूमन फेमिनिज्म और वीमेन एम्पावरमेंट को बढ़ावा देने वाले हत्ता कि सेक्युलर समुदाय के ठेकेदार इस बात पर बहस करते हैं कि इस्लामिक कानून के अनुसार महिलाओ का हनन किया जाता हैं. लेकिन वास्तविकता कुछ और ही हैं. पहले हम इस्लामिक कानून की बात करते हैं इसके बाद आपको फेमिनिज्म, वीमेन एम्पावरमेंट और सेक्युलर का ढिंढोरा पीटने वाले लोगो की सच्चाई से रूबरू करते हैं.
इस्लाम धर्म में संतुलन सबसे एहम मुद्दा हैं. इस्लाम धर्म, शरीयत कानून या इस्लामिक कानून, किसी स्थान पर महिलाओं को ऊपर रखता हैं मर्दो को नीचे रखता हैं तो कही पर दोनों को बराबर रखता हैं. तो ये लोग सिर्फ महिलाओं को नीचे रखने वाले मुद्दों पर ही रौशनी क्यों डालते हैं.
जैसे कि महिलाओं की बात करे तो विशेष कर परदे का मामला सबसे अधिक सामने आता हैं. अमूमन इस्लामी कानून को गलत ठहराने के लिए इस मुद्दे को सबसे ऊपर रखा जाता हैंम कहा जाता है कि महिलाओं को निक़ाब पहनने के लिए ज़ोर क्यों दिया जाता हैं. लेकिन वही दूसरी ओर जब महिलाओं को पर्दा करने का ज़िक्र किया जाता हैं तो बात मर्दो की क्यों नहीं की जाती हैं.
इस्लाम की पवित्र किताब क़ुरान और हदीस की रौशनी में जहां पर मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दे का हुक्म आया हैं वही पर मर्दो के लिए भी परदे का हुक्म दिया गया. तो यहाँ पर एक बात तो यह वाज़े हो गयी कि इस्लाम धर्म ने मर्दो और महिलाओ दोनों को ही परदे का हुक्म दिया हैं जहां पक्षपात नहीं हैं. जो पवित्र किताब क़ुरान की सुरह अहज़ाब में स्थित हैं.
इस्लामिक कानून के अनुसार महियालों को ऐसा पोषक पहनने के आदेश मिले हैं जिससे उनकी शर्मगाह छुपे और सिर ढका रहे तो वही मर्दो के लिए भी यही आदेश हैं कि मर्द अपनी शर्मगाहों को छुपाये. और रहा सिर ढकने का मामला तो पैग़म्बरे इस्लाम मोहम्मद सल्लाहो अलह वसल्लम की सुन्नत की बात की जाये जिसके अनुसार मुसलमान को हर वक़्त सिर ढकना चाहिए. यहाँ से ये बात साबित हो गयी कि इस्लामिक कानून में महिलाओं और मर्दो के लिए बराबर के कानून हैं.
अब बात करते हैं अधिकार के है की, इस समय समाज में ये बात बहुत साधारण तौर पर कह दी जाती हैं कि महलाओं के अधिकारों का हनन किया जा रहा हैं, लेकिन गौर करे तो सबसे पहले बात करते हैं कि निकाह की जब इस्लाम धर्म में किसी लड़का और लड़की की शादी होती हैं तो लड़के वाले बरात लेकर लड़की वालो के घर जाते हैं, जहां निकाह के लिए मौलवी साहब पहले लड़की से बात करते हैं, लड़की की रज़ामंदी के बाद ही मौलवी साहब लड़के की ओर बढ़ते हैं. यदि इस दौरान लड़की निकाह करने से इंकार कर दे, तो लड़का शादी नहीं कर सकता हैं, तो इसमें महिला को अधिकार दिया गया. इसी तरह निकाह के दौरान महेर का मामला भी आता हैं जो महिला अपने शौहर से मांग करती हैं यदि लड़की ने कह दिया उसको अभी महेर चाहिए हैं तो लड़के को किसी भी तरह महेर को चुकाना होगा वो भी उसी समय.
तो ये दूसरा दलील हैं महिलाओं के अधिकारों को मर्दो के अधिकारों के ऊपर रखने की. अब ज़रा आपको इस्लाम धर्म के एक और पहलु से रूबरू कराते हैं, इस्लाम में माँ को जन्नत का दर्जा मिला हैं जो इस्लाम में महिलाओं के अधिकारों को बयान करती हैं. आगे बढ़ते हैं आपको बताते हैं जब कोई लड़का किसी लड़की को शादी करके अपबने घर लेकर आता हैं तो इस्लामिक कानून के अनुसार कोई भी मर्द अपनी बीवी से ज़बरदस्ती कोई काम नहीं करा सकता, यदि बीवी खाना नहीं बनाती हैं तो मर्द उस पर ज़बरदस्ती नहीं कर सकते हैं, कपडे नहीं धोना चाहती तो मर्द उससे ज़बरदस्ती नहीं कर सकता हत्ता कि महिलाओं को इतना अधिकार दिया गया हैं कि यदि माँ अपने बच्चो को दूध नहीं पिलाते हैं तो मर्द उसको ज़बरदस्ती नहीं करा सकता हैं.
इस्लामी कानून के मुताबिक मर्द को अनुमति हैं कि वो चार महिलाओं से शादी कर सकता हैं. लेकिन क़ुरान में ये कहा गया हैं कि मर्द एक औरत से शादी कर सकता हैं, दो से कर सकता हैं, तीन से कर सकता हैं या चार से भी कर सकता हैं लेकिन अगर मर्द चारो महिलाओं के साथ इन्साफ नहीं कर सकता हैं तो एक ही शादी करे. इसको भी महिलाओं के अधिकारों के हनन से जोड़ा जाता हैं. जबकि इस्लामिक कानून ने ऐसा मामला क्यों बनाया हैं ये नहीं सोचते हैं. दरअसल ये कांसेप्ट इस्लाम में इसलिए हैं देखा जाता हैं कि कम उम्र में महिलाओं की तलाक़ हो जाती हैं, कही किसी लड़की का हस्बैंड मर जाता हैं, ऐसे मामलो में महिलाओं को संरक्षण देने के लिए किया गया हैं, ये इस्लाम का कांसेप्ट हैं, जिसमे महलाओं को मज़बूत करने के लिए कानून बनाये गए हैं.
ऐसे ही अनेक मुद्दे हैं जिन पर इस्लामिक कानून को टारगेट करने के लिए सामने रखा जाता हैं और उनके एक ही पहलु को बयान किया जाता हैं. जबकि सच्चाई कुछ और ही हैं. ये कुछ तथ्य आपके सामने रखे हैं. आप अपनी कीमती राय ज़रूर सामने रखे.