दुनिया भर की मुस्लिम महिलाएं और लडकियां हर साल 1 फ़रवरी को यह दिन ‘हिजाब डे’ के रूप में मनाती है. हिजाब डे मनाने का उद्देश है कि इस हर महिला इस्लाम के प्रति अपनी ‘एकजुटता’ दिखाती है और हर मुस्लिम महिलाओं को जागरूक करती है. इस साल भी हर साल की तरह पहले से ही महिलाओं में हिजाब डे के जश्न को लेकर ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी है. दुनिया भर की महिलाऐं सोशल मीडिया पर हिजाब पहने हुए तस्वीरें शेयर कर रही है और इस साथ एक मज़बूत सन्देश भी भेज रहीं है.
हर महिला हिजाब को इस्लाम का गर्व बताती है और हिजाब डे वाले दिन दुनिया भर की मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनकर भविष्य में आगे बढने के लिए प्रेरित होती है. इन महिलाओं को हिजाब को बंदिश नहीं बल्कि इस्लाम का सबसे कीमती तोहफा मानती है. इस दिन मुस्लिम महिलाए खुद को हिजाब पहनकर ‘खूबसूरत’, ‘विश्वासपूर्ण’ और ‘सशक्त’ समझती है और हर महिला को जागरुक करती है कि वह भी हिजाब पहने और अपनी ताकत समझें.
“वर्ल्ड हिजाब डे की शुरुआत”
न्यूयॉर्क शहर के ब्रॉन्क्स में पली बड़ी सिर को हमेशा हिजाब से ढकने वाकी नज़मा खान का कहना है कि वह बहुत सी उम्र से ही धार्मिक भेदभाव से बहुत परिचित है. बांग्लादेश की जन्मी नज़मा 11 साल की उम्र से ही अमेरिका में रहती है और इनकी पढाई लिखाई भी अमेरिका में ही हुई.
अल जज़ीरा के मुताबिक, 11 सितंबर, 2001 के घातक हमलों के बाद सब कुछ तहस-नहस हो गया था. “हर दिन, मुझे सड़क पर चलने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था.” “मेरा पीछा किया गया, मुझे गिराया गया, मुझे कई आतंकवादियों ने घेर लिया था.
अन्य लोगों के साथ जुड़ने के लिए जो अपने सिर को कवर करने की वजह से इसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे थे, खान ने मुस्लिम महिलाओं को सोशल मीडिया पर भेदभाव के अपने अनुभवों को साझा करने के लिए आमंत्रित किया. सोशल मीडिया पर मैंने कई महिलाओं की कहानियां पढ़ी जिन्हें हिजाब पहने की वजह से भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
तब खान से ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ शुरू करने का फैसला किया.
तब से हर साल 1 फ़रवरी को पूरी में वर्ल्ड हिजाब डे मनाया जाता है खान का नॉन-प्रॉफिट आर्गेनाईजेशन सभी धर्मो और जातीयताओं की महिलाओं को दुनिया भर में मुस्लिम महिलाओं के साथ ‘एकजुटता’ बनाये रखने के लिए सबको आमंत्रित करती है.
खान का कहना है कि, महिलाऐं हिजाब को इस्लाम का सबसे कीमती तोहफा मानती है, हिजाब पहनने में गर्व महसूस होता है. हिजाब पहनकर महिलाऐं खुद को सशक्त, आज़ाद और मज़बूत समझती है और अपने हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए खुद आगें आतीं है.
वर्ल्ड हिजाब डे संगठन की अध्यक्ष और संस्थापक नज़मा ने कहा, 1 फ़रवरी को हर मुस्लिम महिला हिजाब पहनकार खुद को एकजुटता का प्रतीक मानती है.
“भेदभाव को खत्म करके आगे बढ़ना”
2013 से शुरू हुआ वर्ल्ड हिजाब डे में अब तक 45 देशों के 70 दूतावास इस अभियान से जुड़ चुके है. 190 देशों की महिलाऐं हर साल हिजाब डे कार्यक्रम से जुड़ती है.
ऐली ल्ल्योर्ड जो एक ब्रिटिश इसाई है, वह कहती कि, वह और उनकी 11 साल की बेटी दोनों ही हिजाब पहनती है . उनका मानना है कि महिलाओं को पर सिर ढकने की पूरी आज़ादी है. हिजाब पहने जाने पर महिलाओं पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाना चाहए.
My #Hijab was never a barrier to my ambitions &the life I wanted to live. It is not true tht the hijabi #woman is controlled by her hijab and that it doesn’t let her live like other women. In contrary, the hijab awakens us to be more confident.- Dr. Ebtsam Alqadi #StrongInHijab pic.twitter.com/erLaq7ZjNI
— World HijabDay (@WorldHijabDay) January 20, 2018